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________________ (५६) उत्पथमा दोरी जवानुं ज कारण बने छे. निदान के-बाजे आवा वक्ताओ शासनमां केवो गोटाळो पेदा करी रह्या छे ते नजरे ज घणी वखत आपणे अनुभवीये छीये. व्यसन, अभक्ष्य अने पौदगलिक मोहमां राचीमाची रहेला उपदेशकोए काइ शासननी ओछी खराबी नथी करी. अतएव-हितार्थीए आचार्यना उपरोक्त गंभीर कथन पर खास ध्यान प्रापवानी जरुर छे. वधुमां ग्रंथकर्ता जणावे छे के-बालादिभाव जाण्या पछी धर्मोपदेश करवो ते पण एवी रीते के-"तदनुसारेण" एटले बालादिकोने हितकारी थाय. परमार्थ-बाल विगेरे धर्मोपदेश श्रवण करी पोतानो बालभाव समजी तेनो त्याग करी बुधपणुं प्राप्त करे. टीकाकार कहे छे के-" यस्य यथोपकराय संपद्यते देशना तस्य तथा विधेया" "जेने जे प्रकारे धर्मदेशना करवाथी उपकार थाय तेने ते प्रकारे धर्मदेशना करवी " अर्थात् जीव आदि एक पण तत्त्वने जे समजता नथी तेवाओ सामे सूत्रोना गहन भावो कथन करवा बेसवं अने गहन तत्त्वोना शोखीनो पासे राजा राणीनी कथानो करवा बेसवं, धर्मना खरा मर्मने नहीं जाणनार पासे लांबा लांबा तत्त्वोना व्याख्यानो करवा ए सर्व अनुचितपणं पेदा करे छे; माटे, अने मूलमां 'हि' ए शब्द होवाथी हितकारी थाय तेवो ज उपदेश आपवो पण अन्यथा प्रकारनो उपदेश न आपवो ए खास उपदेशके ध्यान राखq जोइए. स्पष्ट शब्दोमां कहीये तो अहितकर उपदेश आपवा करता
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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