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________________ (३९) माटे प्रत्यक्ष तो त्याज्य होवा छतां तेने सापवाद कहेवानुं साहस करवु ए ज मताग्रह सूचवे छे. पुनः आगमतत्त्व "अलमैदं पर्यशुद्धं च" अलं-अतिशे सर्वाशे करीने ऐदंपर्य जेनो परमार्थ परमतत्त्व शुद्धं निर्मलनिर्दोष होय, एटले जे आगमना वाक्यो बराबर वस्तुतत्त्वनुं प्रतिपादन करवामां निपुण होय, भूत, भविष्य तथा वर्तमानमां सरखी रीते ज वस्तुतच्च दर्शावता होय, प्रत्येक क्षेत्रमा एक ज रीते अविसंवादीपणे भावो प्रतिपादन करता होय, ज्यारे ज्यारे शासनप्रवृत्ति थाय अने तेना प्रवतको शासननी रचना करे त्यारे त्यारे पूर्वपुरुषोना शासन प्रमाणे ज शास्त्रो उपदेशे अाथी सर्वकाले तुल्यपणे जे शास्त्रो परमार्थनु कथन करता होय, जे आगम वाक्यो आकांक्षादि दोष रहित होय, अने शब्दप्रतिपाद्य शक्तिविशिष्ट होय ते ज अागमतत्व शुद्ध जाणवू. निष्कर्ष एटलो ज के-श्लोकोक्त त्रण विशेषण विशिष्ट जे आगमतत्व होय तेज परम आगमतच अने ग्राह्य तच्च जाणवू. अहीं दर्शावेल त्रण्ये विशेषणोनो परमार्थ अने तेनी विस्तृत व्याख्या मूलकर्ता हवे पछीना श्लोकोथी करे छे एटले त्यांज तेनो विशेष विचार करवो इष्ट गणाय ॥ उपर आपणे तपासी गया के आगमतचनी त्रण प्रकारे परीक्षा करवी, तेमां प्रथम आगम प्रतिपाद्य वस्तु दृष्ट अने इष्ट बन्ने रीते एकवाक्य-अविरुद्धवाक्य होय, तेज आगम बराबर
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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