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________________ ( ३७ ) उतरवाथी अवश्य वध थाय ज एटले ए वध अपरिहार्यरूप होवाथी प्राप्तोए नदी उतरवानी मुनियोने अपवादथी आज्ञा आपेल छे. कोइ साध्वी नदीमां डूबती होय, अन्य कोइ उतारु न होय अने मुनि त्यां हाजर होय तो मुनि पण तेमां पडी साध्वीनो बचाव करी ले. कार्य पडे ग्रहस्थ मुनिने दोषयुक्त आहार आपे-या सर्व प्राज्ञाम्रो प्रभुए अपवादथी आपी छे ने तेमां दोषना बदले लाभ ज दर्शाव्यो छे. परमार्थ ए के-ज्यां उत्सर्ग, सामान्य आज्ञाथी वर्तन करवा जता विशेष आत्महानि, अकल्याण थतुं होय त्यां विशिष्ट आत्मलाभ, कल्याण माटे विशेष कथन करी अन्यथा प्रवृत्ति करवानी छुट पापी होय ते ज आज्ञाओ निर्दोष सयुक्त अने सर्वज्ञवाक्यरूप कहेवाय. मथितार्थ एटलो ज के उत्सर्ग वाक्य कल्याणने माटे होय अने अपवाद वाक्यो पण नितान्त उत्सर्गनी पुष्टि करता होय परंतु उत्सर्ग वाक्यना विध्वंसकरूप अपवाद वाक्यो न बने आ प्रमाणे विवेक जे आगमतत्वमां बराबर सचवायो होय, ते ज सत्य आगमतत्त्व जाणवू. अहीं जेओ यज्ञमां थती हिंसाने धर्म्य तथा विधेय माने के तेत्रो पण आ हिंसा सापवाद के एम कहे छे; कारण के स्वर्गार्थी यज्ञक्रिया अवश्य करे अने यज्ञमां जे पशु ओ बलिरूप बने तेश्रो पण यज्ञ तथा वेदमंत्रना प्रभावथी स्वर्ग प्राप्त करे छे. एटले आ हिंसा पण अहिंसा ज जागावी. पाना टुंक उत्तरमां कहेवू जोइए के-याज्ञिकोनी या दलील अनुभव, युक्तियो अने प्रमाणोना प्रहारोने लेश पण सहन करवाने अ
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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