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( ४१२) क्रोध अने मानने आपसमां अति निकट संबंध छे अर्थात् ज्यां मान होय त्यां कोप जरुर पोतानो प्रभाव दर्शावे छे, एटले कोप अने मान सहचारी छे, माटे ज ते बनेने सर्वज्ञे द्वेषना घर कह्या छे. द्वेषमांथी ते उद्भवे छे. आ मानने दूर करवा नमृता, मृदुतानो अभ्यास विवेकीए अवश्य करवो. परमार्थ एके-सर्वदा विनीतभावे-नम्रभावथी वर्तवू अने गर्व न करवो ए मृदुतानुं चिह्न कयुं छे. आम वर्तवाथी माननो आविर्भाव न थाय. जनताने जाति, कुल, रूप, औश्वर्य, बुद्धि, श्रुत, लाभ, पराक्रम आ आठ कारणोथी गर्वभाव, अकडपणुं, उद्धताइ, उच्छंखलपणुं, कडकाइ आवे छे. अन्य जनोनी अपेक्षाए पोतानी श्रेष्ठ जाति होय, श्रेष्ठ कुल होय, उत्तम सुंदर रूप होय, विशेष औश्वर्य-प्रभुताइ-अधिकार होय, विशिष्ट बुद्धि होय, विशेष श्रुतबोध होय, विशेष प्राप्ति थाय, अतिबल होय, आ सर्व मदना कारणो जाणवा. आ कारण संयोगथी परनी निंदा करे, स्वात्मानी प्रशंसा करे अने आम करवाथी अतिहलका कर्मनो बंध करी आत्मा विवेक विसरी जाय, स्वकर्तव्यथी भ्रष्ट थाय, म्होटान्हानापणानुं भान न राखे तेम ज जे जे पदार्थ संबंधी मद कराय ते ते पदार्थो जन्मांतरमां अधमरूपे प्राप्त थाय आम विचारी माननो त्याग करवो, उदयप्राप्त होय तो दबावी देवो अने भविष्यमां उदय थवा देवो नहीं.
हृदयनी मायाग्रंथीने दूर करी सरलता-निष्कपटपणुं धारण