SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 422
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४११ ) बिचारा परोक्षमां ज कोप करे छे पण प्रत्यक्षमां आवता नथी एज महान् लाभ थयो . यदि प्रत्यक्षमां कोप करे तो ते कोप करी संतोष माने छे परंतु मने मारता नथी ए ज तेओनो उपकार थयो. कदाचित मारे तो तेओ कांड मारा प्राणनो नाश करता नथी किन्तु मारीने तृप्त थाय छे. कथंचित् प्राणनो पण तेओ वियोग करे तो पण मने धर्मभ्रष्ट करता नथी, मारो धर्म कायम रहेवा दे छे एज तेओनो म्होटो उपकार मारा पर थयो. आम विचारी उदयगत कोप निष्फल करवो, एज भाव महर्षिओ जणावे छे. " अक्कोशहणणमारणधम्मभंसाणबालसुलहाणं । लाभं मन्नइ धीरो जहुत्तराणं अलाभंमि " ॥ १ ॥ अन्तमां कोप निष्फल करवा माटे आ विचार करवो " स्वकृतकर्मफलाभ्यागमाच्च " ज्यारे क्रोधथी धसी आवी कोइ आपणा प्राणनो पण नाश करे त्यारे विचारखुं के आ सर्व मारा कृतकर्मनुंज फल छे. पूर्व जन्ममां आ लोको साथे तेवा प्रकारनो लेणदेणनो संबंध कर्यो हशे में तेओने हेरान कर्या हशे, मार्या हशे, प्राणवियुक्त कर्या हशे एटले तेओ अत्यारे मारा पासेथी तेनो बदलो वाळे छे. कोइनुं पण देवं कर्या पछी ए ज्यारे मागे त्यारे विनासंकोचे प्रसन्नहृदये पालुं अर्पं जोइए तेमां कोप करवो ए तो व्यवहारथी पण विरुद्ध जगणाय. अहीं पण देवं चूकावाय छे तो पछी सामो कोप शा माटे करवो ? आम विचारी छेवटे कोपने दबावी देवो, उदय न थाय तेम कर.
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy