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________________ ( ४१३ ) करवुं तेनुं नाम मृदुता . लेश पण माया उत्तम पदार्थ माटे करीए तो पण मल्लिनाथजीनी माफक अकल्याणकर्ता थाय छे, तो पछी विशिष्ट अने विशिष्टतर सांसारिक अनुत्तम पदार्थों माटे जे माया सेवीए तेनुं तो केवुंए अनिष्ट फल प्राप्त थाय ? मायीजननो को विश्वास करे नहीं, कारण के मायीजन सर्वदा सर्व कार्योंमां प्रपंचने ज आगल करे छे. आथी मायीने बुधजनो सर्प तुल्य माने छे तेमज ज्यां सुधी हृदयमां लेश पण पण सारी के खोटी माया होय त्यां सुधी हितकारी प्रवृत्तिनुं सुंदर फल पामे नहीं माटे माया त्याग करी सर्व कार्योमां सरलता धारण करवी जोइए. " जगत्मां ' लोभमूलानि पापानि ' सर्व पापनुं मूल अने अनर्थपरंपरानुं खास कारण लोभ ज छे. हदयना मेलोनी जड घालनार पण लोभ को छे, लोभावश आत्मा कदापि शान्ति अनुभवतो नथी, लोभी प्रतिष्ठा सन्मान अने आबरुने गणतो नथी, लोभी प्रेमसुखनो अनुभव अने कुटुंबनो प्रेमपात्री बनी शकतो नथी, तेमज आ लोक अने परलोकना सुख अर्थे लोभी धर्म पण सेवी शकतो नथी, वळी लोभी उपार्जित लक्ष्मीनुं सुख भोग्यपदार्थ तथा शान्तनिद्रानो पण अनुभव करी शकतो नथी. आथी लोभनो त्याग करी संतोष धारण करवो जोइए. हेतु ए के --' संतोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तचेतसां । कुतस्तद्धनलुब्धाना - मितश्चेतश्च धावतां " ॥ १ ॥ " संतोषरूप अमृतथी तृप्त एवा शान्तहृदयी
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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