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( ३९४) परमात्माने खुशी करवानी कल्पना करवी ए ज अतात्त्विकमिथ्या कल्पना छे. शास्त्रकर्ता आ संबंधमां आगल वधीने जणावे छे के-" बालक्रीडासमा भवति" जेम बालको विविध प्रकारनी बालक्रीडाओ करी, रमतो करी, एक क्षणना माटे 'राजा, प्रधान, राणी, सिपाई, चोर आदि बनावो बनावी, माटीमां बंगलाओ बगीचाओ बनावी, ढिंगला ढिंगली बनावी आनंद माने छे, सुखनो अनुभव करेछे तेम मूर्तिमां मोक्षस्थ आत्मानो आरोप करी तेनी पूजाथी परमात्माने संतोषवा उद्यम करवो अने पोताने कृतकृत्य थया मानवु ए नितान्त मिथ्या छे. ते तो बालक्रीडा जेवू ज गणाय.बालकोनी मान्यता जेम भ्रमिक छे तेम आ मान्यता पण भ्रमिक ज छे. बालकोनी रमतगमतमां वास्तविक सुख नथी किन्तु केवल क्लेश ज छे, तेम मोक्षस्थ आत्मानो आरोप करी ते मूर्तिने पूजी परमात्माने संतोष्या एम मानवु ए पण मिथ्या ज्ञान नहीं तो बीजुं शुं ? अतएव मूर्तिमा निजभावनो आरोप करी मूर्तिनी पूजा स्वकल्याणार्थे जेओ करे अने तेवी क्रियाथी स्वात्माने कृतकृत्य माने ए ज परमार्थ पूजा, ए ज सत्यज्ञान, एज परमात्म संतोषक उपाय कहेवाय. भावार्थ ए केमूर्तिपूजा परमात्माने संतुष्ट करवाने करवी नहीं, किन्तु आत्मकल्याण मानी, स्वकर्तव्य मानी, स्वधर्म मानी करवी एज शास्त्रनिर्दिष्ट वास्तविक पूजा जाणवी.
वीतराग विषयिक आत्मिक प्रशस्त भावनो