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(२८) त्याग दुःख या मोहगर्भित वैराग्यनुं फलरूप के. एवं व्यवहारमां श्रा बने त्याग सरिखा देखाय छे. " बुधज्ञेयता."
सामान्य मनुष्य अामां कांइ पण भेद देखतो नथी तो पण बनावटी अने कुदरती हीरानी परीक्षा अवेरी तुरतन करी ले छै, तैम बुधजनो श्रा बने त्यागमांथी शुद्ध त्याग तथा अशुद्ध त्यागनी परीक्षा त्यागीमां रहेला केटलाक क्रियारुचि, क्रियाकूशलता, पापपरिहार, यतनाप्राधान्यता, सत्यपरूपणंता, प्रशान्तभाव, अल्पमोह आदि विशिष्ट चिन्हो द्वाराए शीघ्र करी शके छे; मांटे ज अहीं मूलमां कह्यु के'बुधविज्ञयं' अर्थात् बुध सिवाय ा परीक्षा मध्यमवर्ग के बालवर्ग न करी शके. कारण के ते लोकोमा एटली विवेचक शक्तिनो प्रभाव होय छे, ए वात पहेला ज ग्रंथकर्ताए स्पष्ट करी छे. ॥"
बुधजनो शुद्ध अशुद्ध त्यागनी परीक्षा कया लक्षणोथी करे छे ए जाणवू जोइये. आनो खुलासो भगवान् हरिभद्रसूरिजी अहीं आ रीते दर्शावें छगुरुदोषारंभितया तेष्वकरण
यत्नतो निपुणधीभिः॥ सन्निंदादेश्च तथा
ज्ञायते एतन्नियोगेन ॥९॥