SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३४१) मुख्य आधार कारीगरना हृदय पर ज रहे थे, अतएष परमोपकारी, परमकृपाल, अनन्तगुणाधीश जिनेश्वर भगवाननी मूर्ति जे कारीगरं पासे कराववी ते पहेला तेने सन्मान, प्रेम, विनय, नम्रता भने धनथी संतोषवो तथा धर्मनी रुचि भने वीतराग देवना उत्तमोत्तम गुणोनो समुचित ख्याल कराववो, तेना हृदयमां वीतरागना गुणो प्रतिविवित थाय तेम करवू. माम कर्या पछी मा कारीगर ने जिनबिंब उपजावे ते एबुं तो चमत्कारी, मनोहर अने नितान्त आकर्षक बने के दृष्टानो अनेकधा सुंदर भावोत्रास पामी तन्मय बनी जाय. पा हेतुथी ग्रंथकर्ता उपदेशे के के-जे जिनबिंब करवानुं होय तेनुं मन कारण जिनेश्वर भगवान, मुख्य स्वरूप, तेमा अनन्त गुयो तेमा ज बेनुं ध्यान, विचार होय अने कारीगरना हृदयगत मनोरथो पण ते कार्यमा परिणत थया होय, एटले प्रा जिनर्विवमा हास्थनी छटा, सुकोमलता, बालमाव जेवी मनोहरता, यौवनमा जेवी परम निर्विकारी लावण्यता अने ध्याननी एकाग्रता श्रादि सद्गुणोनी छाया भने स्यागनी उस्कर्पता, संसार परनी निर्मोहिता विगेरे भावा भावा मनोरथो जे जिनबिंब करती वखते कारीगरना हृदयमा उद्भवी तेमा परिणत थता होग सेवा कारीगर पासे न्यायोपार्जित धनथी भने हृदयनी परम निर्मळताथी उपरोक्त जिनबिंब भाविकोए करावq एम शास्त्रकर्ता कहे छे. भा परथी
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy