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________________ ( ३५० ) कारीगर सरल परिणामी, धर्मरुचि अने न्यायमार्गानुगामी अवश्य होवो जोइए एम जिनबिंब करावनारे खास ध्यान राखवुं. शिल्पी - हृदयगत अनेक प्रकारना सुंदर मनोरथो युक्त एवा शिल्पकार पासे या जिनबिंब कराववुं ए बात उपर दर्शावी गया. वे अहीं शिल्पी - हृदयगत अनेक मनोरथो क्या अनेकेवा होय तेनुं वर्णन करतां ग्रंथकार कहे छे. अत्रावस्थात्रयगामिनो, बुधैर्दोौहृदाः समाख्याताः ॥ बालाद्याश्चैता यत्त क्रीडनकादि देयमिति ॥ ७-९ ॥ मूलार्थ - अहीँ जिनबिंब बनाववामां बुधजनोए जिनबिंब अवस्थात्रय आरोपवा माटे शिल्पीगत बाल, युवा अने मध्यम ए नामक अवस्थात्रयगामी चित्त संबंधी मनोरथो कारणभूत मान्या छे, एटले शिल्पकारोने त्रय अवस्थोचित जे जे रमकडा विगेरे उपकरणो जोइए वे तेनी प्रसन्नता माटे अवश्य अर्पण करवा. " मूर्त्तिमां अमुक भावो केम लाववा ?" स्पष्टीकरण - जिनप्रतिमा बनावनार बाल, युवा अने मध्यम वयस्क ए त्रण पैकी कोइ पण होय अथवा
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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