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(२४) जाणवानी रही माटे ग्रंथकर्ता ए वातनो स्पष्ट खुलासो करे छे.वृत्तं चारित्रं खल्वसदारं
भविनिवृत्तिमत्तच्च ॥ सदनुष्ठानं प्रोक्तं
__ कार्ये हेतूपचारेण ॥७॥ - मूलार्थ-असद्-अशुभ पापकारी प्रारंभोना त्यागरूपअभावरूप जे क्रिया ते चारित्र, प्रानुं नाम ज सद्वर्तन जाणवू. आ वर्तनने कार्यमां कारणनो उपचार-आरोप करी शास्त्रमा सदनुष्ठान कहुं छे." "सत्य चारित्र अने तेनी व्याख्या"
स्पष्टीकरण-वृत्तं-वर्तनं. वृत्त एटले वर्तन-वर्ताव, श्रा: चार, भानुं नाम चारित्र-सत्यत्याग. पा सर्व शब्दो एक ज भावने ध्वनित करे छे एटले एकार्थ प्रतिपादक शब्दो जाणवा. परमार्थ ए के-विधि अने प्रतिषेध बने जेमां होय ते चारित्र. जेमके टीकाकार कहे थे-हिंसा, जूठ, चोरी, मैथुन, मूर्छा ए पांच कर्म भाववाना द्वारो-आश्रवो छे. आ पांचेनो जेमा सर्वांशे निषेध होय तथा अहिंसा, जूठनिवृत्ति, अदत्तत्याग
आदिनु विधान जेमां एकान्ततः जणाव्युं होय, मूलमां 'खल्लु ए वाक्य अवधारणार्थे-निश्चयार्थे प्रापेल होवाथी, पावा प्र. कारना वर्तनने ज चारित्र दर्शाव्यु के. निदान के-विधि तथा