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(२३ ) " उकरडो अने त्याग"
विगेरे गाथाअोवडे गुणशून्य त्याग मलमूत्र नांखवाना उकरडा जेवो जाणवो. जेम उकरडो मळमूत्रथी व्याप्त होवाथी लोको तेना प्रति तिरस्कारभावथी देखे छे, एवं उपरोक्त त्याग पण गुणशून्य नहीं, किन्तु अनेक मलिन वासना, विषयतृष्णामान, पूजा प्रतिष्ठा, लोभरुप, मळमूत्र भरेल होवाथी उकरडो छे. उकरडामां दुर्गध ज होय तेम अहीं पण दुर्गुणरूप दुर्गन्धनी मात्रामोज देखाय छे. वधुमां सज्जनो उकरडा तरफ तिरस्कार भावथी नथी देखना पण तेने अमुक अंशे सादरभावथी पण देखे छे. ज्यारे ा त्यागरूप उकरडा तरफ तो सज्जनो शुंपण महात्माअो पण तिरस्कार्य नजरथी देखे छे तेनो छांया लेवानी पण निषेध करे छे, एटले विष्टाना उकरडा करतां आ त्याग तो सर्वाशे उपेक्षणीय छ, दूरथी सो सो गजना नमस्कार करवा योग्य छे. परमार्थ के-प्रावो त्याग देखी तेना पर पूज्यभाव धारण करवो ते पण पहापापकारी समजबुं. ज्यारे बालवर्ग आवा त्यागने पण धर्मबुद्धिए निहाळे छे, वंदन, पूजन, नमस्कार करे छे; माटे ज अहीं आ वर्गने कनिष्टकोटिनो विद्वानो माने छे. ॥
प्रथम कह्यु हतुं के-"बालवर्ग" करता मध्यमबुद्धि वर्ग चडतो छे, कारण के पा लोको खाली वेशथी ज खुशी नथी थता किन्तु वर्तन आदि तपासे छे. एटले हवे अहीं मुनियोनुं वर्तन कोने कहेवू ? अने ते वर्तन केवु होय ? ए वात