SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३१७) बंध करावी दुर्गतिमां प्रात्माने फेंके छे. ब्रह्मदत्त चक्रवर्तीए पूर्वजन्ममां परम शुद्ध मुनिपणुं पाळ्यु. चक्रवर्तीनी पट्टराज्ञीनी वेणीनो वंदना करता मुनिने स्पर्श थयो. सुकोमल अने परम सुंदर केशकलापना स्पर्श मुनिनुं चित्त चकडोळे चडाव्यु, (मुनिनो प्रात्मा कामपरवश बन्यो.) ध्यान अने धर्मभावनाथी मुनिनो प्रात्मा भ्रष्ट थयो. ते कामिनीना संयोगमां चित्त चोंटी गयुं. एज ध्यान, एज विचारोरोमेरोम व्याप्त थया. परिणामे (पोताना पवित्र कर्मना फल तरीके) प्रावी कामिनी जन्मांतरमां पामवा मुनिए स्वहृदयमां गांठ बांधी, तन्मय विचारोमां मुनिनो देहांत थयो, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती थया, पूर्व जन्मना बन्धु मुनिए धर्म पमाडवा अनेक प्रयत्नो कर्या छतां ते सर्वे व्यर्थ थया अने ते आत्मा नरकनो अतिथि बन्यो. ा प्रमाणे प्रखर तप के चारित्र पाळवा छतां नियाणु करवाथी ते सर्व धूळमां मळी जाय छे, माटे अहीं शास्त्रकार कहे छे के-जिनमंदिर बंधावनारे जिनमंदिर, जिनदेवो पर एकान्त प्रेम, श्रद्धा अने भक्तिवडे बंधावq. अर्थात् आ क्षणिक जींदगीमां परम कल्याणहूँ स्थान, अनन्त पापो नाश करवानुं खरं साधन, संसार तरवार्नु मुख्य यंत्र, प्रात्मशुद्धिनुं कारण तथा पापोपार्जित धन व्यय करवानो मुख्य मार्ग अने अनन्त पुण्य प्रहवाहनी नदी आ जिनमंदिर ज छे, ए प्रमाणेनी भावनाथी जिनमंदिर बंधावऍ; परंतु जिनमंदिर संततीनो लाभ, वंशनी वृद्धि, धननी प्राप्ति, आरोग्यता, यश, कीर्ति, प्रतिष्ठा या लोभथी मा अाशयोथी बंधाववू नहीं; कारण के आ श्राशयो धारी
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy