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.. उपर प्रापणे तपासी गया के-" बालवर्ग ते ज जाणको के जो बाह्यवेश मात्र देखी खुशी थाय, नमस्कार करे अने तेमां धर्म माने" प्राथी ज बालवर्ग खरो धर्म पामी शकतो नथी, कारण के बाह्यवेश धर्मप्रति कांइ प्रधान. कारण नथी, किन्तु अप्रधान कारण मान्यो छे. आथी शु बाह्यवेश ए त्याग नथी जेथी तेमां धर्मनो निषेध कर्यो ? प्रा शंका उपजे खरी. अतः श्रा शंकाना उद्धार अर्थ ग्रन्थकार हवे समाधान बतावे के. बाह्य लिंगमसारं
__तत्प्रतिबद्धा न धर्मनिष्पत्तिः। धारयति कार्यवशतो
यस्माच्च विडंबकोप्येतत् ॥४॥ मूलार्थ-बाह्यवेश-उपरनो आडंबर असार-तुच्छ छे. हेतु एके-बाह्यवेशना साथे कांइ धर्मसिद्धि प्रतिबद्ध नथी, कारण के अमुक कार्य परत्वे-कांइक स्वार्थनी सिद्धि माटे विडंबक लोको अने नाटकियाो पण या बाह्यवेश धारण करे छे. "बाह्यवेशनी तुच्छताना कारणो" ।
स्पष्टीकरण-बाह्यवेश ए शुं त्याग नथी ? बाह्यवेश धर्ममां अप्रधान कारण शा माटे ? ा शंकाओनो उद्धार आ प्रमाणे जाणवो-बाह्य एटले जेने जनता पोतानी दृष्टिये