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________________ ( २२१) तैमज धर्म संबंधी आरोग्यता मल्या पछी पापप विकारोनो जन्म यतो नथी. "स्पष्टीकरण" आरोग्यता एटले तंदुरस्तीपणुं, रोगनो प्रभाव, एटले तंदुरस्तीपणामां व्याधिो जन्मे तो तंदुरस्तीपणुं न कहेवाय, कारण के तंदुरस्तीपणुं तथा व्याधियो ए बनेने परस्पर प्रतिबंधक प्रतिबध्यभाव छे, ते ज प्रमाणे प्रथम जणावेल पांच लक्षण विशिष्ट 'धर्मतत्त्व' पाम्या पछी पापविकारो जेनुं स्वरूप ग्रंथकर्ता नीचे जणावे छे ते कदापि उद्भवे नहीं अर्थात् ए पापविकारोने बंध करनार उपरोक्त धर्मतत्त्वरूप प्रारोम्यता जाणवी. या प्रलोकना पूर्व भागमां ग्रंथकर्ताए दृष्टांत प्राप्युं अने उत्तरभागमां दार्शन्तिकनी घटना करी छे. परमार्थ एके-आरोग्यतानी सामे धर्मारोग्यता अने व्याधिविकारोनी सामे पापविकारो ए प्रमाणे दृष्टीत दाष्टांतिकनी घटना समजवी. धर्मतत्त्वना प्रभावथी जे जे पापविकारोनो नाश थाय अथवा उद्भवे नहीं तेनुं स्वरूप ग्रंथकर्ता विस्तारथी दर्शावे छे. तन्नास्य विषयतृष्णा प्रभवत्युच्चैनै दृष्टिसम्मोहः । अरुचिर्न धर्मपथ्ये न च पापा क्रोधकंडूतिः ॥४-९॥
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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