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वेश के बाह्य आचारादिमां धर्म मानता नथी, कारण के प्रवचनाज्ञा प्रधान जे वर्त्तन अने तेवा वर्तनथी अलंकृत मुनिवेश आदि मार्ग जात्मकल्याण साधी शके छे. जेम प्रवचन
ज्ञानो लोप थतो होय, प्रवचनने बाधा उपजती होय तेनुं एकान्त सुंदर पण चारित्र गर्हणीय कनुं छे. निदान के प्रवचन श्राज्ञानुं बराबर पालन थवं जोइये - " धर्माधर्म-व्यवस्थायाः शास्त्रमेव नियामकं । तदुक्तासेवनाद्धर्मस्त्वधर्मस्तद्विपर्ययात् " ॥ १ ॥ " धर्म, अधर्मनी व्यव-स्था करवामां शास्त्र पोते ज नियामक छे, माटे शास्त्राज्ञाना पालनमां धर्म अने तेथी विपरित चालवाथी अधर्म छे. " निष्कर्ष ए के - बुधजनो तत्त्वदर्शी होवाथी आागमाज्ञानुसारी वर्तन देखे छे अने आगमतत्त्वनी ज परीक्षा करे छे; वेश आदिनी परीक्षा करता नथी, एज वात ग्रंथकर्त्ता जणावे छे“ आगमतत्त्वं तु बुधः परीक्षते " मूलमां " सर्वयत्नेन " ए पद ग्रंथकर्त्ताए एटला माटे आप्युं छे के बालजीवो अने मध्यमजनो धर्मनी परीक्षा केवल सामान्यपणे ज करे छे परंतु खास डढताथी करता नथी, ज्यारे बुधजनो सर्व प्रकारे पोतानी बनती कोशीशे अने कसोटीपूर्वक आगमतस्वनी परीक्षा करे छे.
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अथवा जेम बालजीवो केवल वेशमां ने मध्यमजनो केवल आचारमां धर्म माने छे तेम बुधजनो मानता नथी, किन्तु वेश अने प्राचार जणावनार शास्त्रमां तत्त्व परमार्थ शुं