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________________ छे १ तेमां अविसंवादिपणुं केवु छे ? सर्वज्ञकथित छे के नहीं ! विगेरे तपासे के अने त्यारपछी तथाप्रकारना वेश के आचारादिने धर्मतया-सत्यतया स्वीकारे छे. बस आ रीते मित्र भिन्न बुद्धिना कारणथी उपरोक्त त्रण भेदो धर्मपरीक्षकोना अहीं ग्रंथकर्ताए जणाव्या. .. आटलुं सामान्य कथन कर्या पछी हवे बाल, मध्यम आदिनी विशिष्ट ओळखाण कराववी प्रावश्यक गणाय माटे आचार्यश्री ते प्रत्येकना लक्षणो प्रथमथी दर्शावे छेबालो ह्यसदारंभो मध्यमबुद्धिस्तु मध्यमाचारः । ज्ञेय इह तत्त्वमार्गे, ___ बुधस्तु मार्गानुसारी यः ॥ ३ ॥ मूलार्थ:-असद् आरंभमां प्रवृत्ति करे ते बाल, मध्यम आचार सेवे ते मध्यम, अने तत्त्वमार्ग-परमार्थनी प्रवृत्ति करनार मार्गानुसारी जे होय ते बुधपुरुष जाणवो. "बाल-लक्षण" . स्पष्टीकरण-अहीं ग्रंथकर्ता बाल, मध्यम अने बुधना लक्षणो दर्शावे छे. प्रत्येक पदार्थनुं ज्ञान तेना लक्षणर्नु भान थवाथी ज थाय छे. पहेला श्लोकमां धर्मपरीक्षक वर्गना त्रण भेदो दर्शाव्या एटले तेश्रोनुं विशिष्टज्ञान करवा लक्षणो दर्शाववा ज जोइये. अतएव "बालो ह्यसदारंभो" असद्
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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