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________________ (११) होय तो ज ते वंदनीय-नमस्करणीय कहेवाय. निदान के-वेश साथे आगल जणावाशे तेवा आचारो देखी-तपासी पछी ज श्रा लोको तेमां धर्म माने छे; माटे आ लोकोने बालकवर्गथी भिन्न मध्यम वर्ग नामे बीजी पंक्तिमा विद्वानो गणावे छे. आ वर्ग पैकीना लोकोमा एटली अवश्य विशिष्टता होय छे केतेओ मुनिवेष के श्रावकनो धर्मीवेष देख्या पछी जो के नम्र, कोमलपरिणामी बने छ खरा तो पण साथे साथे पोतानी बुद्धिथी एटलुं तो जरुर विचारे छ के-अहीं आचार-नियम विगेरे केवा छे ? ते जो होय तो नमस्कारादि करे अने न होय तो लोकरंजननो आडंबर के एम माने छे. अत एव ग्रंथकारे कडं के-' मध्यमबुद्धिर्विचारयति वृत्तम् " मध्यमबुद्धिजनो आचारनो विचार करे छे. " बुधवर्ग" ज्यारे तत्त्वज्ञजनो उपरोक्त बस्ने वर्गथी भिन्न होय छे एटले आ लोको वेशमात्रथी राजी थता नथी तेमज उपरना आचारादि मात्र देखवाथी खुशी थता नथी, अर्थात् जेरोमां विशिष्ट तत्त्वज्ञान होय, परमार्थ जेत्रो अच्छी रीते देखी शके छे, कार्यना परिणामदर्शी जेओ होय छे, जेश्रोने आगमोक्त तत्त्वनो सुंदर बोध होय तेनुं नाम अहीं बुद्धवर्ग छे. एटले आ लोको पोतानी बुद्धि अनुसारे जेमां वेश तेमज आगमानुसारी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आश्री वर्तन, नियम, आचारादि होय तेमां ज धर्म माने के, अने तेनो ज आदर करे छे. सिवाय खाली
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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