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(१९०) जे कारणथी द्रव्यक्रियाने तुच्छ गणी भावनी प्राधान्यता कही ते कारण श्रीमान् हरिभद्रमरिजी बतावे छे
अस्माच्च सानुबन्धा
च्छुड्यन्तोऽवाप्यते द्रुतं क्रमशः । एतदिह धर्मतत्त्वं
परमो योगो विमुक्तिरसः ॥३-१३॥ मूलार्थ:-उपरोक्त भावनी परंपराथी ज क्रमे क्रमे शीघ्र अन्तःकरणनी शुद्धिनो वधारो प्राप्त थाय छे एटले अविच्छिन्न भावनी परंपरा चाले छे, तेमज उपरोक्त भाव ए जधर्मनुं खास तत्त्व छे अने भाव ए ज परम योग छे-भाव ए ज विशिष्ट मुक्तिनो रस छे. स्पष्टीकरण
पूर्वे कहेल पांच प्राशयोनो वारंवार अभ्यास करवाथी भावनी दृढता वधे छे. आत्मामां शुभ संस्कारो स्थापना शुभक्रियानो वारंवार अभ्यास करवो एम शास्त्रो उपदेशे छे. अतएव 'प्रणिधान' आदि भावोनो अभ्यास करवाथी तेनी दृढता थाय अने तेथी अनुबंध प्राप्त थाय छे. पछी तेनी अविच्छिन्न परंपरा चाले जेथी अत:करणनी तीव्रशुद्धि शीघ्र दीर्घकालना विलंब वगर पमाय छे. अन्तमा श्रा जन्म अथवा अन्य जन्ममां तीव्रशुद्धि थवाथी अधिक कर्मक्षय आत्मा करे छे. अहीं आ भाव ज धर्मतत्त्व छे के अन्य काइ