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________________ (.१४६) ." मलो धोवानो मार्ग" मणि तथा कांचनने लागेल माटीरूप पल शास्त्र-अग्नि आदिनी क्रियाद्वाराए दूर थाय छे, एवं प्रात्मा-चित्तने लागेल पूर्वोक्त मलोनो दूर करवानो उपाय ग्रंथकर्ता जणावे छे. • आगमसद्योगतो विगम एषां" 'जिनप्रणीत जे श्रागम तेना सद्बोध-सम्यग्ज्ञानथी आ मलोनो विगम-नाश थाय छे.' "शियालभूत सिंहने ज्यारे अन्य सिंहनो समागम थयो अने तेणे कयु के-भाइ ! तुं पण मारा जेवो ज छे. या टोळामां तुं क्याथी भळ्यो ? आ लोको तो पापणे खोराक छे. तने विश्वास न आवतो होय तो तुं विचारी जो के तारुं शरीर, वर्ण, आकृति, शब्द अने क्रियानो पा लोकोथी केटला जुदा छे? आ वचन श्रवण कर्या पछी ज्यारे तेणे विचार्यु अने बराघर समजायुं त्यारे सिंहनाद कर्यो एटले पोताना स्वरूपने तेणे ओळखी लीधुं." ए ज रीते अहीं पण आत्मानुं अनादि शुद्धरूप अने रागादि भावोनो विकार आ बनेनी भिन्नता, कर्मोनी लीला अने स्वरूप, पुद्गल अने पोतानो भेद, ज्ञानादि गुणोनो चमत्कार, सन्मति तथा दुर्मतिना कारणो, उपादेय क्रियाप्रोनुं आचरण, हेय भावोनो त्याग-या सर्व पदार्थने प्रकांडतया जणावनार एबुं जिनभगवंतना आगमनुं ज्ञान आत्माने प्राप्त थवाथी पोतानुं कर्तव्य तेने समजाय छे. एटले आत्मा विहिताचरण अने निषिद्धना त्यागरूप क्रियामां प्रवर्तन करे छे, जेथी उपरोक्त मलोनो अवश्यमेव नाश ज थाय छे. निदान के
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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