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________________ (१९४६) अवश्यमेव छे. अतः धर्म परीक्षक बुधजनोए धर्म स्वीकारना पहेला या लक्षण ध्यानमा राखी तथाप्रकारनो धर्म स्वीकारना प्रयत्न करवो. एटले ज्यारे आ लक्षण अभ्याहत रीते समन्वित थाय त्यारे ज ते सत्य अकर्तुम धर्म छे एवं समज. परमार्थ ए के - आवो 'धर्म' सर्वज्ञप्रवचन सिवाय अन्यत्र पामवो अशक्य ज छे. " धर्म ' ना लक्षणमां " मलविगमेन पुष्ट्यादिभद्' ए जगणायुं तो यहीं मलो क्या ? अने चित्त अथवा धर्मनी पुष्टि- शुद्धि ते केवी रीते ९ या भाव दर्शाक्वा श्रोताप्रति श्राचार्यश्री कथन करे छे." रागादयो मलाः खल्वागमसद्योगतो विगम एषां । तदयं क्रियात एव हि 19 पुष्टिः शुद्धिश्व चित्तस्य ॥ ३-३ ॥ मूलार्थ - राग, द्वेष, मोह आदि मनना मेलो छे, या मलोनो निश्चयेन आगम - सर्वज्ञवचनना सद्व्यापारथी नाश वाय छे; माटे सत्क्रियाथी ज आ मननी पुष्टि - पुण्यवृद्धि तथा चितनी शुद्धि - निर्मळता सुंदर रीते बने छे. 46 मनना मेलो " स्पष्टीकरण – “ रागादयो मला " शुद्ध पदार्थने जे
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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