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स्पष्टीकरण-" शिष्टाः शिष्टत्वमायान्ति शि. ष्ठमार्गानुवर्तनात् " शिष्टो उत्तमपुरुषोना पंयर्नु अनुकरण करवाथी उत्तमजनो उत्तमताने मेलवे छे" आ एक सर्व साधारण नियम छे. आचार्य हरिभद्रसूरिजी पण एक उत्तम शिष्ट कोटिना अग्रगण्य शिष्टपुरुष छे. शिष्टोनो एवो आचार छे के" शिष्ट-प्राचार"
ग्रंथना प्रारंभमां मंगल, अभिधेय, प्रयोजन अने संबंध चार पदार्थों कह्या पछी ज अवशेष वक्तव्यतुं कथन करे छे. अतएव ग्रंथकर्ता पण आ चारे पदार्थ- स्वरूप अने ग्रंथनो उद्देश एक ज आर्याद्वाराए देखाडे छे. शास्त्रनी आदिमां स्वेष्ट देवने नमस्काररूप मंगल करवु आवश्यक गणाय, तेथी अने शास्त्रनी निर्विघ्ने समाप्ति थाय, श्रोता तथा पठन करनार सुखे शास्त्राभ्यास करी शके एवं भा ग्रंथ मंगलशून्य छे श्रा प्रकारनी शिष्योनी बुद्धिनो परिहार करवा माटे प्राचार्य'प्रणिपत्य जिनं वीरं' ए पदथी मंगलनुं प्रतिपादन करे छे, तथा अन्यान्य पदोवडे अभिधेयादिकनुं पण स्वरूप कहे छे. " मंगलादि-कथन"
राग-द्वेषादि अनादिकालीन शत्रुवर्गनो विजय करवाथी जेश्रो जिनभगवंत बन्या छे, एवं प्रखर तपस्याथी जेओए निविडतम कर्मोनो नाश करवा अद्भुत वीरपणुं दाखव्यु हतुंः एटले-" विदारयति यत्कर्म तपसा च विराजते ।