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________________ थाय कारण के परीक्षा परीक्षक विना रही शकती नथी. न्यायनी भाषामां परीक्षा अने परीक्षकनो परस्पर व्याप्ति संबंध कह्यो छे, माटे ज उत्तम धर्मनी परीक्षा कोण करी शके विगेरे भावोने समजाववा चौदसो चुमालीश ग्रंथकर्ता आचार्य हरिभद्रसूरिजी आ षोडशकनामा प्रकरगर्नु कथन करे छे. आ प्रकरणमां आर्या छंदवडे निबद्ध सोल अधिकारो छे. प्रत्येक अधिकारने सोल-सोल श्लोकथी प्रतिपादन कर्या छे, पाटे ज ा प्रस्तुत प्रकरणर्नु सान्वय एवं षोडशक नाम ग्रंथकर्ताए राख्युं छे। ___आ तो उपर जणाव्या प्रमाणे प्रस्तुत ग्रंथकर्ताए प्रस्तुत ग्रंथनो संबंध दर्शाववां एक सामान्य प्रस्तावना कही. हवे प्रस्तुत ग्रंथने शरु कर्ता ग्रंथनी आदिमां मंगल, अभिधेय, संबंध अने प्रयोजनने दर्शावनार आदिनो आर्या श्लोक हरिभद्रसूरिजी कथन करे छे"प्रणिपत्य जिनं वीरं, । सद्धर्मपरीक्षकादिभावानाम् । लिंगादिभेदतः खलु वक्ष्ये किंचित्समासेन" ॥१॥ मूलार्थ-राग-द्वेषादि शत्रुवर्गने जीतनार एवा वीर परमात्माने नमीने उत्तम धर्मनी परीक्षा करनार वर्गो-लोको विगेरे पदार्थोर्नु स्वरूप, तेना चिन्हो तथा भेदो प्रकाशवावडे करीने कांइक संक्षेपथी हुँ ( हरिभद्रसूरि ) कथन करीश.
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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