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________________ ( ५ ) 99 तपोवीर्येण युक्तश्च तस्माद्वीर इति स्मृतः १ जेश्रो कर्मोने विदारे छे अने महान् तपस्याथी शोभे छे, अत एव तपने वीर्यवडे युक्त होवाथी वीर ए नामथी जेमनुं स्मरण कराय छे, एवा अने अखंड वार्षिक दानद्वारा जगतना दारि नो जेए नाश कयों छे, संगम जेवा पिशाचाधम देवे छ मास पर्यंत भयंकर प्राणहर उपसर्गो करवा छतां जेबोए अतुल क्षमा धारण करी हती, अने द्वादश वर्ष पर्यंत घोर तपस्या एकरी ती एवा दानवीर, शूरवीर अने तपवीर वीर भगवानने त्रिकोणयोगनी शुद्धिपूर्वक नमस्कार हो. परमार्थ ए के उपरोक्त गुणोथी रंजित था इंद्रादि देवोए जेमोनुं महावीर ए सगुण नाम स्थापन कर्यु छे तेमने नमीने, आ रीते ग्रंथकर्ता श्लोकना प्रथम चरणवडे स्वेष्टदेवने नमनरूप मंगलनो बोध करी, बीजा चरणथी उत्तम धर्मनी परीक्षा करनारा विगेरे पदार्थोनुं स्वरूप कथन करवानुं जगावे छे. निदान केप्रस्तुत ग्रंथमां धर्मना परीक्षको बाल, मध्यम, बुध पैकी ए वर्ग छे तेनुं स्वरूप एवं धर्मनुं स्वरूप, तेना लक्षणो, धर्मीनुं स्वरूप अने तेना लक्षणो विगेरे अनेक पदार्थनो परिस्फोट ग्रंथकार करशे ते पण विविध चिन्होवडे तेमज अनेक भेदोवडे संक्षेपथी ज किन्तु विस्तारथी नहीं, कारण के -अध्येतृ वर्ग अथवा श्रोतावर्ग अधिक क्लेश न थाय माटे, या रीते ग्रंथकारे प्रस्तुत ग्रंथरचनानुं प्रयोजन जणान्युं अन्यान्य ग्रंथोमां पूर्व महर्षिए जो के बाल, मध्यम आदि धर्मपरीक्षकोनुं स्वरूप
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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