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________________ ( २ ) मंगल जे मृत आत्माने अजरअमर बनावे छे, तेम जे प्रभुए श्री अमृत तुल्य एवं द्वादशांगीरूप वचनामृत जगतना कल्याण माटे प्रकाश्युं, तथा मोहरूप महाकालकूट झेरनो जेओए मामूलतः नाश कर्यो छे, एत्रा वीरप्रभुने नित्य नमस्कार हो । जेना स्मरणमात्रथी ज परमार्थभूत पदार्थोंने जणावनार बुद्धि उत्पन्न थाय अने ज्ञाननिर्मल अर्थात् सुबुद्ध एवी वाचा प्राप्त थाय छे, ते सरस्वती नामनी देवी विजयवती हो । टीकाकार भगवान श्रा रीते शिष्टाचारनुं पालन करवा, निर्विघ्ने टीका समाप्त करवा स्वेष्टदेवने नमस्कार करी प्रकृत ग्रंथनी टीकानी प्रस्तावना या प्रमाणे कहे छे - प्रस्तावना एक सामान्य वस्तुनी परीक्षा कर्या पछी तेने स्वीकारवाथी ग्राहक असंतोष के खेद थतो नयी. निदान के कोइ पया चीज परीक्षा कर्या पछी ज स्वीकारवी ए न्याय गाय, तो पछी संसारमा डुबता अने पोताना उद्धारनी अपेक्षा राखनारे, तेमज पोतानुं हित साधवामां निपुणे, दरेक कार्योमां दोष तथा गुण संबंधी गुरु-लाघत्रतानो विचार करनारे, परमार्थ के लाभालाभनो ख्याल करनारे एवं प्रश्नोत्तरी संबंधी परमार्थ विचारनार विद्वाने तो अवश्यतया उत्तम धर्मनी परीक्षा करवी जोइए. धर्मनी परीक्षा तो परीक्षक विना न ज
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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