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(१२३) आज्ञाओने हृदयांकित करी शके, आज्ञाओ पर बहुमान न होय तो परमेश्वरनुं बहुमान नथी ए पण निश्चित जाणवू. एटले परमेश्वरने खुशी अथवा प्राप्त करवानो सरल मार्ग आज छे के परमेश्वरनी आज्ञाोने हृदय साथे एकाकार करवी. सामान्य व्यवहारमा पण एज नियम छे के मनुष्यना बहुमान पहेला तेनी आज्ञाशोनुं बहुमान लोको इष्ट गणे छे, ते सिवाय तो प्रत्येक मनुष्य तेवा व्यवहारने छल व्यवहार माने छे. कायदामां पण सरकारना बहुमान पहेला तेना फरमाननो प्रथम आदर करवो पडे छे, अतः अत्र साफ साफ कही दीधुं के वचननो आदर करवाथी ज मुनींद्र-भगवाननो ज अवश्यमेव आदर थाय छे. एटले पछी ज क्रियमाण (कराता) प्रत्येक तप, जप, संयम, स्वाध्याय आदि क्रियाओ फलदातृ बने छे. जे मनुष्य भगवाननुं बहुमान घणी घणी खुशीथी करे छे, पण तेमनी प्रत्येक न्हानीमोटी आज्ञाम्रो स्वीकारता नथी अथवा एकाद आज्ञानुं खून करे छे तो ते मनुष्यनी उत्कृष्ट पण तप, संयम आदि क्रियाओ निष्फल जेवी ज भगवाने कही छे बल्के संसारभ्रमणरूप दंडनो अधिकारी कह्यो छे ए वात आगल जणावी गया छीए. प्रभु आराधनाना उपाय माटे प्रकारान्तरे एतत् ग्रंथकर्ताए अष्टक प्रकरणमा खुल्लंखुल्ला जणाव्यु छ के- "यस्य चाराधनोपायः सदाज्ञाभ्यास एव हि" पुनः "हृदयस्थिते च तस्मिन् नियमात् सर्वार्थसंसिद्धिः" उपरोक्त कथनथी सिद्ध थइ चूक्यु के वचनना बहुमानद्वाराए ज परमेश्वर हृदयमां विराजे-प्रसन्न थाय छे.