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(१२४) " अभीष्ट सिद्धियो" - अतएव भगवान हृदयमां विराजवाथी नियमेन अात्माने सर्व अर्थो-अभिष्टोनी सम्यक्तया सिद्धि थाय छे. निदान के भगवान मल्या पछी क्यो पदार्थ जगतमां एवो छ के आत्मा सहजतया (सहेलाइथी) न मेळवी शके १ टुंकमां तप, जपादिनी सिद्धि, अष्टसिद्धिनी प्राप्ति, शरीर संबंधी दुःखोनो ह्रास, इंद्र चक्रवर्त्यादिनी रिद्धियो अने छेवटे संसारनो नाश थइ परमात्मा साथे एकाकारपणुं हस्तगत थर्बु आत्माने कांइ दुःसाध्य नथी. अल्पकालेन अभिलषित स्थानोनी प्राप्ति थाय छ, केवल परमेश्वरनी हृदयमां अद्भूत रीते स्थापना थवी जोइये माटे ज बुधजनने उपदेशके भगवाननी आज्ञा आराधवानो प्रधानतर उपदेश प्रापवो अने तेनो प्रभाव पारीते जणाववो.
" भगवाननी प्रसन्नताथी सर्व कार्योनी सिद्धि थाय छे, एवं जणावी भगवानना माहात्म्यनी ग्रंथकर्ताए अाटली स्तुति शा माटे करी ? शुं भगवान सर्व कार्यों करी आपे छ खरा ? आ शंकानुं समाधान ग्रंथकर्ता दृष्टांतनी घटना साथे करे छे." चिंतामणिः परोऽसौ
तेनैव भवति समरसापत्तिः ॥ सैवेह योगिमाता,
निर्वाणफलप्रदा प्रोक्ता ॥ २-१५ ॥ मूलार्थ-आ भगवान्-जिनेश्वरदेव चिंतामणिरत्न