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________________ ( -११२ ) निदान के - छेवटे तेनाथी ज तेने मोक्षप्राप्ति याय छे. निष्कर्ष एटलो ज के - मुनिये गुरु श्राज्ञाधीन रहेवुं, गुरुकुमां वास करवो, तैनाथी ज परमेश्वरनी प्राप्ति अने छेवटे मोक्ष थाय छे ए रीते उपदेशके ' मध्यमबुद्धि' वर्गने उपदेश श्रपवो. श्रा रीते गुर्वाधीनता जणावी छेवटमां ' मध्यम० ' योग्य उपदेशनो उपसंहार दर्शावी अडधी आर्याथी श्राचार्यश्री 'बुध' योग्य उपदेशविधिनी प्रस्तावनानो उल्लेख करे छे इत्यादि साधुवृत्तं मध्यमबुद्धेः सदा समाख्येयम् || आगमतत्त्वं तु परं बुधस्य, भावप्रधानं तु ॥ २-११॥ मूलार्थ - पूर्वे दर्शाव्या प्रमाणे साधुओोनुं सद्वर्तनसुंदर आचरण, क्रियाकूशलता उपदेशके निरंतर 'मध्यमबुद्धि' वर्ग पासे कथन कर, अने ' बुधवर्ग ' ने तो रहस्यप्रधान आगमतत्त्वनो ज उपदेश श्रपवो. E6 उपसंहार ” स्पष्टीकरण - अत्र ग्रंथकर्त्ता पूर्वार्धभागमां ' मध्यमबुद्धि ' योग्य उपदेशविधिनो उपसंहार दर्शावे छे ने उत्तराधथी 'बुध' योग्य उपदेशनो प्रस्ताव करे छे. आ श्लोकनो भाव.
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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