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________________ ( ११३) स्पष्ट ज छे एटले तेनो विस्तार करवो ए ग्रंथना कलेवरने वधारवारूप ज थाय. टुंकमां प्राचार्यश्री कहे के के-अमे पूर्वे जे ' मध्यमबुद्धि' माटे ईर्यासमिति आदि आठ प्रवचनमातानुं स्वरूप दर्शावी तेनुं पालन करवानुं जणाव्युं, सिद्धान्त-तत्त्व ग्रहण करवानी योग्यता दर्शावी, गुर्वाधीनता, गुरुआज्ञाग्राह्यता विगेरे उपदेशविधिनो प्रकार दर्शाव्यो तेना पर उपदेशके बराबर ध्यान आपी तदनुकूलपणे तथाप्रकारनो उपदेश 'मध्यमबुद्धि' ने हमेशा कथन करवो. एटले सम्यग्ररीत्या साधुओनुं सद्वर्तन जणाव, जेना श्रवणथी आ लोको धर्मकार्यमां अधिक श्रद्धालु बनी परिणामे बुधनी कोटीमां दाखल थाय. अर्थात् उपदेशकनी उपदेशकूशळता त्यारे ज प्रशस्यतर गणाय के ज्यारे श्रोता उपदेशबलथी स्थापित श्रद्धामां मजबूत रही अधिक धर्मरुचिपणुं अने तत्त्वज्ञमति प्राप्त करे. बस अहीं ' मध्यम' योग्य उपदेशविधि ग्रंथकर्ता समाप्त करे छे. " उपक्रम" ____ एटले क्रम प्राप्त अने बुधनी कोटीमा आवेल मध्यमजनो जेनी अभिलाषा करे एवा बुध योग्य उपदेशनी आचार्यश्री प्रस्तावना करे छे. 'आगमतत्त्वना प्रेमी अने हम्मेशा आगमतत्त्वनी ज शोधमां, परीक्षवामां लीन होय ते बुध.' या लक्षण ग्रंथकर्ता आगल जणावी गया छे. अतएव ा लोकोने उपदेशके आगमतत्त्वनो उपदेश आपको एटले आगमनुं खरं रहस्य
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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