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________________ (५३१) मनुष्य के समान था. ऐसे अद्भुतस्वरुपको देखकर कुमारने हँस कर कहा कि “जो ये मनुष्य अथवा देवता होते तो इनका मुख अश्वके समान क्यों होता ? अतएव ये न तो मनुष्य हैं और न देवता; परन्तु कोई अन्य द्वीपमें उत्पन्न हुए तिर्यच जान पड़ते हैं, अथवा किसी देवताके वाहन होंगे?" कुमारका यह कर्णकटु वचन सुनकर दुःखित हो किन्नर बोला- " हे कुमार ! तू कुकल्पना करके मेरी वृथा विडंबना क्यों करता है ? जगत्में इच्छानुसार कामविलास करनेवाला मैं व्यंतर देवता हूं, परन्तु तू मात्र तिर्यचके सदृश है. कारण कि तेरे पिताने तुझको एक देवदुर्लभ दिव्यवस्तुसे चाकरकी भांति दूर रखा है. ____ अरे कुमार ! " समरांधकार " नामक एक उत्तम नीलवर्ण अश्व तेरे पिताको पूर्वकालमें किसी दूरद्वीपान्तरमें मिला था. जैसे खराब राजा कृश और वक्रमुख धारी, हलके कानका, बिना ठिकानेका, पगपग पर दंड करनेवाला और क्रोधी होता है, वैसे ही वह अश्व भी कृश तथा वक्रमुख, छोटे कानका, अतिचपल, स्कंध पर बेडीरुप चिन्ह वाला और जरा भी प्रहार न सह सके ऐसा है. यद्यपि वह अश्व दुष्टराजाके समान है तथापि यह आश्चर्य है कि वह सब लोगोंके मनको आकर्षित करनेवाला तथा अपनी व अपने स्वामीकी ऋद्धिको बढ़ाने वाला है. कहा है कि-- ' कृश मुख , मध्यम
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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