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________________ (५३०) सुभटका जीवन बल, ठगका जीवन असत्य, जलका जीवन शीतलता और भक्ष्यवस्तुओंका जीवन घृत है। इसलिये चतुरपुरुषोंने धर्मकृत्यका नियम लेने में तथा लिये हुए नियममें दृढता रखनेमें अत्यन्त दृढ प्रयत्न करना चाहिये. कारण कि उससे वांछितसुखकी प्राप्ति सुखपूर्वक होती है." रत्नसारकुमारने सद्गुरुका यह कथन सुनकर इस प्रकार सम्यक्त्वसहित परिग्रहपरिमाणव्रत लिया कि -" मैं मेरे अधिकारमें एक लाख रत्न, दस लाख सुवर्ण, आठ आठ मूडे (मापविशष) मोती और प्रवाल (मूंग) के, आठ करोड स्वर्णमुद्रा, दस हजार भार चांदी आदि धातुएं, सौ मूडे धान्य, एक लाख भार शेष किराना, छः दश हजारका गोकुल, पांचसौ घर तथा हाट, चारसौ वाहन, एक हजार घोडे और सौ हाथी रखूगा. इससे अधिक संग्रह नहीं करूंगा तथा राज्य और राज्यकार्य भी नहीं करूंगा. श्रद्धावन्त रत्नसारकुमार इस प्रकार पांच अतिचार रहित पांचवें अणुव्रतको अंगीकार कर श्रावकधर्म पालन करने लगा. एक समय वह पुनः अपने शुद्धहृदय मित्रोंके साथ फिरते २ " रोलंबलोल" नामक बगीचमें आया. बगीचकी शोभा देखता हुआ वह क्रीडापर्वत पर गया. वहां उसने दिव्यरूप और दिव्यवेषधारी एक किन्नरके जोडेको दिव्यगान करते हुए देखा, उन दोनोंका मुख अश्वके समान और शेष अंग
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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