SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 555
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५३२) शरीर वाला ( न तो बहुत मोटा और न बहुत पतला ), छोटे कान वाला, ऊंचे स्कंध और चौडेवक्षस्थलवाला, स्निग्धरोमवाला, पुष्टपासे (पुढे) वाला, विशालपीठवाला और तेज़वेगवाला इत्यादि श्रेष्ठ गुणधारक अश्व हो उस पर राजाने बैठना चाहिये. पवनसे भी चपल वह अश्व 'सवारका मन अधिक आगे दौडाता है, कि मैं दौडता हूं ? मानो इसी स्पर्धासे एक दिनमें सौ कोस जाता है. ऐसे लक्ष्मीके अंकुररूप अश्व पर जो मनुष्य सवार होता है, वह सात दिनमें अलौकिक वस्तु पाता है, यह बड़े ही आश्चर्यकी बात है ! अरे कुमार ! तू स्वयं अपने घर तककी तो गुप्त बात जानता ही नहीं है, और पंडिताईका अहंकार कर अज्ञानवश वृथा मेरी निन्दा करता है ? जो तू अश्वको प्राप्त कर लेगा, तो तेरा धैर्य, और चतुराई मालूम होगी." इतना कह वह किन्नर किन्नरीके साथ आकाशमें उड़गया. यह अपूर्व बात सुन रत्नसारकुमार घर आया और अपनेको बहुत ठगाया हुआ मान, मनमें म्लान हो शोक करने लगा व घरके मध्यभागमें जा द्वार बंद कर पलंग पर जाकर बैठ गया । तब खिन्न हो पिताने आकर उससे कहा कि, " हे वत्स ! तुझे क्या कष्ट हुआ? क्या कोई मानसिक अथवा शारीरिक पीडा उत्पन्न हुई ? स्पष्ट कह ताकि मैं उसका उपाय करूं, क्योंकि बिना वींधे तो मोतीकी भी परीक्षा नहीं हो सकती
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy