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________________ (५०५) शास्त्रमें वर्णन किया है, तदनुसार उपकारका कारण होनेसे यहां भी लिखते हैं___"राजा ! सो मूर्ख कोनसे ? सो सुन, और उन मूर्खताके कारणोंको त्याग. ऐसा करनसे तू इस जगत्में निर्दोषरत्नकी भांति शोभा पावेगा. १ सामर्थ्य होते उद्यम न करे, २ पंडितोंकी सभामें अपनी प्रशंसा करे, ३ वेश्याके वचन पर विश्वास रखे, ४ दंभ तथा आडंबरका भरोसा करे, ५ जूआ, कीमियाआदिसे धन प्राप्त करनेकी आशा रखे, ६ खेतीआदि लाभके साधनोंसे लाभ होगा कि नहीं ? ऐसा शक करे, ७ बुद्धि न होने पर भी उच्च कार्य करनेको उद्यत हो, ८ बणिक होकर एकान्तवासकी रुचि रखे, ९ कर्ज करके घरबारआदि खरीदे, १० वृद्धावस्थामें कन्यासे विवाह करे, ११ गुरुके पास अनिश्चितग्रंथकी व्याख्या करे, १२ प्रकट बातको छिपानेका प्रयत्न करे, १३ चंचल स्त्रीका पति होकर ईष्या रखे, १४ प्रबलशत्रुके होते हुए मनमें उसकी शंका न रखे, १५ धन देनेके पश्चात पश्चाताप करे, १७ अपढ होते हुए उच्चस्वरसे कविता बोले, १७ बिना अवसर बोलनेकी चतुरता बतावे, १८ बोलनेके समय पर मौन धारण करे, १९ लाभके अवसर पर कलह-क्लेश करे, २० भोजनके समय क्रोध करे, २१ विशेषलाभकी आशासे धन फैलावे, २२ साधारणबोलने में क्लिष्ट संस्कृतशब्दोंका
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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