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________________ (४३१) जातिके कुछ परिचित मनुप्योंको भी लेना, मार्गमें निद्रादि प्रमाद लेशमात्र भी न करना तथा यत्नपूर्वक जाना उचित है । परदेशमें व्यापार करना पडे अथवा रहना पडे तो भी इसी रीतिसे करना. कारण कि एक भाग्यशालीके साथमें होनेसे सबका विघ्न टलता है. इस विषय पर दृष्टान्त है, वह इस प्रकार:--- एकवीस मनुष्य वर्षाकालमें किसी ग्रामको जा रहे थे. संध्यासमय वे एकमंदिरमें ठहरे। वहां बिजली बार २ मंदिरके द्वार तक आकर जाने लगी। उन सबने भयातुर हो कहा कि, " अपने में कोई अभागी मनुष्य है, इसलिये प्रत्येक मंदिरकी चारों ओर प्रदाक्षिणा देकर यहां आवे ।" तदनुसार वीस जनोंने अनुक्रमसे प्रदक्षिणा देकर मंदिर में प्रवेश किया । एकवीसवां मनुष्य बाहर नहीं निकलता था, उसे शेष सबने बलात्कार पूर्वक खींचकर बाहर निकाला । तब बीसों ही पर बिजली गिरी । उनमें एक ही भाग्यशाली था । इत्यादि ___ अतएव भाग्यशाली पुरुषोंके साथमें जाना, तथा जो कुछ लेन देन होवे, अथवा निधि आदि रखा होवे, तो वह सब पिता, भाई, पुत्र आदिको नित्य कह देना, उसमें भी परग्राम जाते समय तो अवश्य ही कह देना चाहिये । ऐसा न करनेसे कदाचित् दुर्दैववश परग्राममें अथवा मागेमें अपनी मृत्यु हो
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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