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________________ (४३२) जाय, तो धनके होते हुए पिता, भाई, पुत्र आदिको वृथा दुःख भोगना पडता है। विवेकीपुरुपने परगांव जाते समय धनादिककी यथोचित चिन्ता करनेके लिये कुटुंबके सब लोगोंको योग्य शिक्षा देना तथा सबके साथ आदर पूर्वक बातचीत करके जाना । कहा है कि- जिसको जगत्में जीनेकी इच्छा हो, उस मनुष्यने पूज्यपुरुषोंका अपमान कर, अपनी स्त्रीको कटुवचन कहकर, किसीको ताडना कर तथा बालकको रुलाकर परग्राम गमन न करना चाहिये । परग्राम जानेका विचार करते जो कोई उत्सव या पर्व समीप आगया हो तो वह करके जाना चाहिये । कहा है कि- उत्सव, भोजन, बडा पर्व तथा अन्य भी सर्व मंगलकार्यकी उपेक्षा करके तथा जन्म या मरण इन दो प्रकारों के सूतक हो अथवा अपनी स्त्री रजस्वला होवे तो परग्रामको गमन न करना चाहिये। इसी प्रकार अन्यविषयोंका भी शास्त्रानुसार विचार करना उचित है । कहा भी है कि- दूधका भक्षण, स्त्रीसंभोग, स्नान, स्त्रीको ताडना, वमन तथा थूकना आदि करके या आक्रोश वचन सुनकर परग्रामको न जाना । हजामत करा कर, नेत्रों से आंसू टपकाकर तथा शुभशकुन न होते हों तो परग्रामको न जाना । अपने स्थानसे किसी कार्यके निमित्त बाहर जाते जिस भागकी नाडी चलती हो, उस ( रफका पैर आगे रखना। इससे मनवांछित कर्मकी सिद्धि
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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