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________________ (४३०) होता है । चतुरमनुष्यने किसीकी जमानत देना ( भलामण )आदि संकटमें न पडना. कार्पासिकने कहा है कि-दरिद्रीको दो स्त्रियां, मार्गमें क्षेत्र, दो तरहकी खेती, जमानत और साक्षी देना ये पांच अनर्थ स्वयं मनुष्य उत्पन्न कर लेते हैं. वैसेही विवेकीपुरुषने शक्तिभर जिस ग्राममें निवास करता हो उसीमें व्यापारआदि करना जिससे अपने कुटुम्बके मनुष्योंका वियोग नहीं होता, घरके तथा धर्मके कार्य यथास्थित होते हैं. अपने ग्राममें निर्वाह न होता हो तो अपने देश में व्यापारआदि करना, परन्तु परदेश न जाना चाहिये. अपने देशहीमें व्यापार करनेसे बारम्बार घर जानेका अवसर आता है तथा घरके कार्यादिका निरीक्षण भी होजाता है. ऐसा कौन दरिद्री मनुष्य है जो अपने ग्राम अथवा देशमें निर्वाह होना सम्भव होने पर भी परदेश जानेका क्लेश सहता है ? कहा है कि-- हे अर्जुन ! दरिद्री, रोगी, मूर्ख, मुसाफिर और नित्य सेवा करनेवाला ये पांचों जीते हुए भी मृतके समान है, ऐसा शास्त्रमें सुनते हैं । यदि परदेश गये रिना निर्वाह न चलता हो, व परदेश ही में व्यापार करना पडे, तो स्वयं न करना, तथा पुत्रादिकसे भी न कराना, किन्तु विश्वासपात्र मुनीमों द्वारा व्यापार चलाना. किसी समय अपनेको परदेश जाना पड़े, तो शुभशकुनआदि देख तथा गुरुवंदनादिक मांगलिक कर भाग्यशाली पुरुषों ही के साथ जाना चाहिये. साथमें अपनी
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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