SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४२९) पास में द्रव्य रखने में, वस्तुकी परीक्षा करनेमें, गिनने में, गुप्त रखने में, खर्च करने में और नामा ( हिसाब आदि लेख) रखने में जो मनुष्य आलस्य करता है, वह शीघ्र ही नष्ट होता है. मनुष्यको सर्व बात ध्यान में नहीं रह सकती, बहुतसी विस्मृति हो जाती हैं, और भूल जानेसे वृथा कर्मबन्धआदि दोष सिर पर आता है. अपने निर्वाह के लिये चन्द्रमा जैसे सूर्यको अनुसरता है, वैसेही राजा तथा मन्त्री आदिको अनुसरना चाहिये. अन्यथा पराभवआदि होना सम्भव है । कहा है कि चतुरपुरुष अपने मित्रजनों पर उपकार करने के निमित्त तथा शत्रुओं का नाश करनेके निमित्त राजाके आश्रयकी इच्छा करते हैं, अपना उदरपोषण करनेके ! लिये नहीं कारण कि, राजाके आश्रय बिना अपना उदर पोषण कौन नहीं करता । बहुतसे करते हैं. वस्तुपालमंत्री, पेथड श्रेष्ठ आदि लोगोंने भी राजाके आश्रय से जिन - मंदिर - आदि अनेक पुण्यकृत्य किये हैं. अस्तु, विवेकी पुरुषने जूआ, धातुवाद ( किमिया ) और व्यसनोंका दूरहीसे त्याग करना चाहिये. कहा है कि-- दैवका कोप होनेही पर द्यूत, धातुवाद, अंजनसिद्धि, रसायन और यक्षिणीकी गुफा में प्रवेश करनेकी बुद्धि होती है. इसी प्रकार सहज कार्य में सौगन्दआदि भी न खाना चाहिये. कहा है कि--जो मूर्ख मनुष्य चैत्य ( देव ) के सच्चे या झूटे सौगन्द खाता है वह बोधिबीजको निकालता और अनन्त से सारी
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy