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________________ (३४७) प्राप्तिसे कर्मका विवेक होता है, कर्मके विवेकसे अपूर्वकरणकी प्राप्ति होती है. अपूर्वकरणसे केवलज्ञान उत्पन्न होता है. व केवलज्ञान उत्पन्न होनेसे सदैव सुखके दाता मोक्षकी प्राप्ति होती है । पश्चात् श्रावकने साधु साध्वी आदि चतुर्विध संघको वन्दना करना. जिनमंदिरआदि स्थल में गुरुका आगमन होवे उनका भली भांति आदर सत्कार करना. कहा है कि अभ्युत्थानं तदालोकेऽभियानं च तदागमे । शिरस्यंजलिसंश्लेषः, स्वयमासनढोकनम् ॥ १ ॥ आसनाभिग्रहो भक्त्या, वंदना पर्युपासनम् । तद्यानेऽनुगमश्चेति, प्रत्तिपतिरियं गुरोः ॥ २॥ गुरुको देखते ही खडा हो जाना, आते हों तो सन्मुख जाना, दोनों हाथ जोडकर सिरपर अंजलि करना, आसन देना, गुरुके आसन पर बैठ जानेके अनंतर बैठना, भक्तिपूर्वक उनको वन्दना करना, उनकी सेवा पूजा करना, जब वे जावें तो उनके पछि २ जाना. इस प्रकार संक्षेपसे गुरुका आदर होता है. वैसे ही गुरुकी बराबरीमें, मुख सन्मुख, अथवा पीठकी तरफ भी न बैठना चाहिये. उनके शरीरसे भीडकर न बैठना, वैसे ही उनके पास पग या हाथकी पालखी वाल कर अथवा लंबे पैर करके भी न बैठना. अन्यस्थानमें भी कहा है कि-पालखी वालना, टेका लेकर बैठना, पग लम्बे करना, विकथा करना, अधिक हंसना इत्यादि गुरुके समीप बर्जित हैं, और भी कहा है कि- .
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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