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________________ (३४६) पंच नामादि बावीस मूलद्वार तथा चारसौ ब्यानवे प्रतिद्वार सहित द्वादशावर्त वन्दनकी विधि तथा दस प्रत्याख्यानादि नव मूलद्वार और नब्बे प्रतिद्वार सहित पच्चखान विधि भी भाष्यआदि ग्रंथ से जान लेना चाहिये. पच्चखानका लेशमात्र स्वरूप पहिले कहा है। अब पच्चखानका फल कहते हैं। धम्मिल कुमारने छः मास तक आंबिल तप करके बडे २ श्रेष्ठियोंकी, राजाओंकी तथा विद्याधरोंकी बत्तीस कन्याओंसे विवाह किया तथा अपार ऋद्धि प्राप्त की. यह इस लोकमें फल है । तथा चार हत्याका करने वाला दृढप्रहारी छ:मास तप करके उसी भवमें मुक्तिको गया यह परलोक फल है. कहा है कि पच्चक्खाणमि कए, आसवदाराई हुंति पिडिआहिं । आसववुच्छेएण य, तण्हावुच्छेअणं हवइ ॥१॥ तण्हावुच्छेएणं, अउलोवसमो भवे मणुम्साणं । अउलोवसमेण पुणो, पच्चक्खाणं हवइ सुद्धं ॥ २॥ तत्ते। चरित्तधम्भो, कम्मविवेगो अपुवकरणं तु । तत्तो केवलनाणं, तत्तो मुक्खो सयासुक्खा ॥ ३ ॥ पच्चखान करनेसे आश्रव द्वारका उच्छेद होता है. आश्रवके उच्छेदसे तृष्णाका उच्छेद होता है. तृष्णाके उच्छेदसे मनुष्योंको बहुत उपशम होता है. बहुत उपशमसे पच्चखान शुद्ध होता है. शुद्धपच्चखानसे चारित्रधर्म प्राप्त होता है. चारित्रधर्मकी
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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