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________________ परहितार्थकारिता गुण पर आनन्द पाकर हे भव्यो ! विमल कुमार के समान सदैव पूर्णतः तृष्णा रहित रहो। * इति विमलकुमार चरित्र समाप्त * कृतज्ञता रूप उन्नीसवां गुण कंहा । अब परहितार्थकारिता रूप बीसा गुण है। उसका स्वरूप उसके नाम ही से जाना जा सकता है । इसलिये धर्म प्राप्ति के विषय में उसका फल कहते हैं। परहियनिरओ धनो-सम्मं विनाय धम्म सम्भावो । अन्न वि ठवइ मग्गे-निरीहचित्तो महासत्तो ॥२७॥ मूल का अर्थ-परहित-साधन में तत्पर रहने वाला धन्य पुरुष है, क्योंकि वह धर्म के वास्तविक भाव का यथोचित ज्ञाता होने से निःस्पृह व महा सत्ववान रहकर दूसरों को भी मार्ग में स्थापित करता है। ___टीका का अर्थ-जो स्वभाव ही से परहित करने में अतिशय लीन होता है वह धन्य है । अर्थात् वह (धर्मरूप) धन को पाने के योग्य होने से धन्य कहलाता है । सम्यक् रीति से धर्म के सद्भाव का ज्ञाता याने यथावत् धर्म के तत्व को समझने वाला अर्थात् गीतार्थ इससे अगीतार्थ जो परहित करना चाहता हो तो भी उससे नहीं हो सकता ऐसा कहा हैतथाचागमः-किं इत्तो कठ्ठयरं जं सम्ममन्नायसमयसम्भावो । अन्न कुदेसणाए कट्ठयरागंमि पाडेइ ॥१॥ त्ति ।।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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