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________________ विमलकुमार की कथा इस कपटी को अपना गाड़ा हुआ धन भी बता दिया । इससे एक दिन रात्रि को वामदेव ने गड़ा हुआ धन खोद कर गुप्तरीति से हाट (बाजार ) के बाहर छिपा दिया, व चौकीदारों ने देख लेने से उसे निकाल लिया । २५५ इतने में सूर्योदय हुआ तो वामदेव ने चिल्लाया कि सेंध लगाई ! सेंध लगाई !! जिससे वहां बहुत से मनुष्य एकत्र हो गये व सरल भी उदास हो गया । तब चौकीदारों ने कहा कि - हे सेठ ! खिन्न मत होओ। चोर को हमने पकड़ लिया है । यह कह वामदेव को बांधकर वे राजा के पास ले गये । राजा ने क्रुद्ध हो उसे प्राण दंड की आज्ञा दी । तब सरल सेठ ने प्रार्थना कर बहुत सा धन देकर जैसे वैसे उसे छुड़ाया । तब वह लोगों में निन्दित होने लगा कि यह पापी तो कृतघ्न का सरदार है कि - जिसने अपने पिता तुल्य विश्वासी सरल सेठ को ठगा । किसी अन्य दिन किसी विद्यासिद्ध मनुष्य ने राजा के महल को लूटा परन्तु उसका पता न लगने से राजा अति क्रोधित हुआ । व उसने कहा कि यह वामदेव ही का काम है । यह कह उस पापिष्ट को फांसी पर चढ़ाया। जिससे वह मरकर सातवीं तमतमा नारकी में गया । वहां से अनन्तकाल पर्यंत संसार में भटक कर किसी प्रकार मनुष्य भत्र पाकर कृतज्ञ हो, वामदेव ने मुक्ति पाई । इस भांति कृतज्ञता गुणरूप सुधा को, जो कि संताप को हरने वाली है, दुर्लभ है, अजरामर पद देने वाली है, बुधजनों को भी प्रार्थनीय है उसे पी पीकर अपाय कष्ट से दूर रह तथा महान्
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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