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________________ परहितार्थकारिता गुण वर्णन आगम में भी कहा है कि इससे अधिक दुःख पूर्ण क्या है कि जो शास्त्र का परमार्थ सम्यक् रीति से जाने बिना ही दूसरों को असद् उपदेश देकर महान् कष्ट में डालते हैं । गीतार्थ हुआ पुरुष अन्य अज्ञानी जनों को सद्गुरु से सुने हुए आगम के वचनों के प्रपंच से मार्ग में याने शुद्ध धर्म में स्थापित करते हैं याने प्रवर्तित करते हैं और धर्म को जानने वाले जो सिदाते हैं उनको स्थिर करते हैं । भीमकुमार के समान । __इस साधु और श्रावक को समानता से लागू होते परहित गुण के व्याख्यान पद से साधु के समान श्रावक को भी अपनी भूमिका के अनुसार देशना देने में प्रवृत्त होने को सम्मति दी है। इसीसे श्री पांचवे अंग के दूसरे शतक के पांचवे उहश में कहा है कि हे पूज्य ! उस प्रकार के श्रमण माहन की पर्युपासना करने से क्या फल होता है ? हे गौतम ! पर्युपासना से श्रवण होता है। श्रवण से क्या होता है ? ज्ञान होता है । ज्ञान से क्या होता है ? विज्ञान होता है। विज्ञान से क्या होता है ? प्रत्याख्यान होता है। प्रत्याख्यान से क्या होता है ? संयम होता है । संयम से क्या होता है ? अनाश्रव होता है । अनाव से तप होता है । तप से निर्जरा होती है। निर्जरा से अक्रिया होती है। अक्रिया से सिद्धि होती है। सवणे नाणे य विन्नाणे-पचक्खाणे य संजमे । अणण्हए तवे चेव-बोदाणे अकिरिया चेव ॥१॥ गाहा गाथा का अर्थ-श्रवण, ज्ञान, विज्ञान, प्रत्याख्यान, संयम, अनाश्रव, तप, व्यवदान और अक्रिया (ये एक एक के फल हैं )
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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