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________________ सदाइविसयसाहण धण सारक्षण परायणमणिठें । सन्याभिसंकण परोवधायकलुसाउलं चित्रं ॥२२॥ __अर्थः - शब्दादि विषयों के साधन समान पैसे के संरक्षण में तत्पर और सर्व को शंका तथा अन्य (उसको ताकने वाले) के घात को कलुषित बुद्धि से व्याकुल चित्त चिंतन चौथा सरक्षणानुबन्धी रौद्रध्यान है। हुआ। तो उसमे पड़ा हुआ अनार्य । उसके ये खराब ऋत्य भी अनार्य कहे जावेंगे और उनका क. र चितन भी वैसा ही कहा जावेगा । अतः यहां इस रौद्रध्यान को अनायं कहा। यह तीसरा प्रकार हुआ। ४. चौथा प्रकार : संरक्षणानुबन्धी रौद्रध्यान अब रौद्रध्यान के चौथे प्रकार का वर्णन करते हैं:विवेचन : ___संरक्षणानुबन्धी रौद्रध्यान उसका चौथा भेद है। इसमें धन संरक्षण में मशगूल होकर उसका उग्र चिंतन होता है। जीव को अच्छे अच्छे शब्द रूप रस आदि विषयों की प्राप्ति तथा भोग बहुत पसंद हैं। इससे उसके साधन रूप धन की प्राप्ति व रक्षा में वह तत्पर रहता है। इसके लिए वह 'कैसे मिले, कैसे रक्षा हो' उसके खूब चिंतन में वह चढता है। इसमें विशिष्टता यह है कि उसकी प्राप्ति का चिंतन आर्तध्यान है और रक्षा का चिंतन रौद्रध्यान होता है । कारण यह है कि प्राप्त करने से रक्षा करने की बुद्धि में ज्यादा करता आती है। अलबत्ता प्राप्त करने की लेश्या में भी कोई झूठ, चोरी तथा जीव घात की क्र र विचारधारा हो, तो वह भी रौद्रध्यान बन जाता है। परन्तु उसके संरक्षण के चिंतन में मिला हुआ कसे टिके', उसका सामान्य हो तो वह भी आर्तध्यान हो जाता है।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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