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________________ ( ६८ ) रौद्रध्यान क्रोध या लोभ से:-यह रौद्रध्यान आने का कारण तीव्र क्रोध या लोभ है। जीव जब किसी पर भी उग्र क्रोध से व्याकुल हो जाता है और उससे तीव्र शत्रुता या विरोध खड़ा होता है, तब उसकी खुजली उतारने, उसे बता देने के लिए उसका कुछ चुराने (उठा लेने) के क र चिंतन में चढता है। तीव्र लोभ से ग्रस्त जीव अपने इच्छित किसी पदार्थ को प्राप्त करने के लिए चोरी, लूट या उठाइगिरि करने के क्रू र चिंतन में चढता है । इस तीव्र लोभी या क्रोधी का इच्छित सफल होगा या नहीं, यह निश्चित नहीं है। अरे ! वह चोरी का प्रयत्न भा कर सकेगा या नहीं, यह भी अनिश्चित है। तब भो अन्धा बनकर अभी जो क र चिंतन करता है वह तो रौद्रध्यान के रूप में उसकी ललाट पर चिपक ही जाता है। तीव्र क्रोध या लोभ की व्याकुलता ही ऐसी है कि उसे ऐसा अन्धा बना दे जिसे ऐसे अन्धेपन के योग से जीवन में आते हुए भयंकर फल का विचार ही नहीं, यहाँ चोरी करते पकड़े जाने पर कैसी सजा होगी, बेइज्जती होगी आदि का जिसे डर न हो या विचार नहीं, उसे वह न हो तो भी परलोक में इस घोर पाप से उत्पन्न भयंकर अशुभ कर्म के अति कटु विपाक से नरकागमनादि के कैसे भयंकर दुःख भोगने पड़ेंगे, उसकी तो परवाह ही कैसे हो? परलोक के अनर्थों से तो वह लापरवाह है ही। इसीलिए चोरी के उग्र चिंतन में कदाचित उसे लगे कि उसे कोई रोकने या पकड़ने आवेगा तो उसे मारने तक का निर्णय करता है। दृढ प्रहारी ऐसे ही क्रूर ध्यान से चोरी करने घुसा, तो बीच में आये हुए गाय आदि को उसने मार डाला। इसीलिए ऐसा क्रूर चिंतन अनार्य कोटि का है । आर्य अर्थात् सर्व त्याज्य धर्म (बात या पदार्थ) जैसे शिकार, जुआ चोरी आदि से बाहर निकला
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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