SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २ ) - निन्हववाद, परमेष्ठि नमस्कार आदि पर ऐसे तर्क पूर्ण विशद विवेचन किये कि बाद में वह शास्त्र 'आकर ग्रन्य' के रूप में प्रसिद्ध हुआ, एवं द्रव्यानुयोग का महाशास्त्र गिना जाता है। उपरांत इसी महर्षि ने श्रमणसूत्र में आये हुए 'चहिं झाणेहि' पद को लेकर 'झारण' याने 'ध्यान' पर 'ध्यानाध्ययन' की रचना की। वह १०५ गाथा का है। अर्थात् (१००) 'शत' के निकट की संख्या को गाथाओं का है। अत: यह अध्ययन 'ध्यान शतक' नाम से पहचाना जाता है। परिपुरंदर श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज ने . इस शास्त्र की गाथाओं के प्रत्येक पद के गम्भीर भाव स्पष्ट करने के लिए पूरी व्याख्या रची है। १४४४ शास्त्रों के प्रणेता के नाम से प्रसिद्ध इन बहुश्रु त महाप्रज्ञ आचार्य भगवन्त को भी भारी ख्याति है। योगशतक, योगदृष्टिसमुच्चय, योगबिन्दु, अनेकान्तवाद, उपदेशपद, पंचाशक, धर्मसंग्रहणी आदि मौलिक शास्त्रों की रचना के उपरांत उन्होंने श्री चैत्यवन्दन सूत्रवृत्ति, आवश्यक सूत्र वृत्ति आदि व्याख्या ग्रन्थों की भी रचना की है । इसमें से एक इस ध्यानशतक पर यह संक्षिप्त व्याख्या ग्रन्थ है। इन दोनों के आधार पर यहां मूल गाथा तथा अर्थ देकर उस पर गुजराती भाषा में सरल विवेचन किया गया है। जहां 'ध्यान शतक' के रचयिता पूर्वधर महर्षि हों और व्याख्याकार समर्थ शास्त्रकार हों, तो फिर उस ग्रन्थ में आये हुए पदार्थों का गौरव कितना अधिक होगा, यह समझा जा सकता है। व्याख्याता स्वयं ही लिखते हैं कि 'ध्यान शतक' शास्त्र महार्थ है अर्थात् महान पदार्थों से भरा हुआ है; अत: यह 'आवश्यक' से एक भिन्न शास्त्र है। इसलिए इसके प्रारम्भ में शास्त्रकार मंगलाचरण करते हैं। जिससे विघ्न दूर हों। इस मंगल के रूप में इष्टदेव * यह उसका हिन्दी अनुवाद है।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy