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________________ ॐ ध्यानशतक श्री ध्यानशतक नाम से प्रसिद्ध 'ध्यानाध्ययन' नामक १०५ माथा के शास्त्र की पूर्ववर महर्षि पू० श्री जिनभद्रगरण क्षमाश्रमण महाराज ने रचना की । उस पर पू० आ० श्री हरिभद्रसूरिजी महाराज ने 'संक्षिप्त व्याख्या की। दोनों महर्षि इतने अति उच्च श्रेणी के विद्वान हैं कि उनकी पंक्तियों का बाद के शास्त्रकार अपने रचित शास्त्रों में सूत्राक्षर को तरह आधार रूप में उद्धृत करते हैं आचार्य पुरंदर श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण आप पूर्वधर महर्षि हैं । १४ पूर्व नाम के शास्त्र श्रुतसागर समान हैं । उनमें से वे 'पूर्व' शास्त्र के जानकार हैं । उनके बाद तो 'पूर्व' शास्त्र बिलकुल ही नष्ट हो गये क्योंकि वे लिखे हुए नहीं थे । वे केवल मौखिक रूप से पढ़े जाते, पढ़ाये जाते और याद रखें जाते । सभी मौखिक काल के प्रभाव से जीवों की बुद्धि का ह्रास होने से उसे ग्रहरण करना तथा याद रखना कठिन हो गया । अतः श्री महावीर प्रभु के बाद १४ पूर्व में से क्रमश: नष्ट होते होते १००० वर्ष में तो 'पूर्व' ज्ञान पूर्णतः नष्ट हो गया। श्री जिनभदगरि क्षमाश्रमण महाराज प्रथम सहस्त्राब्द के अन्तिम भाग में हुए अतः उन्हें लगभग १ पूर्ण का ज्ञान होगा ऐसा माना जाता है। इतना भी कुछ कम नहीं | उसके आधार पर उन्होंने अकेले. 'करेमि भंते' सामायिक सूत्र की नियुक्ति पर लगभग साढ़े तीन हजार श्लोक प्रमाण 'विशेषावश्यक भाष्य' की रचना की । उसमें पंचज्ञान, अनुयोग, गमाधरवाद,
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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