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________________ विषयानुक्रपः [ १५ विषय । ସୃଷ୍ଣ २३५ २७१ २७२ २.४ २४१ २७६ २४२ २८१ २८४ " , लेश्या २८६ पृष्ठ विषय भावनाओं का लाभ २३३ १ ला शुक्ल ध्यानः धर्मध्यान में लेश्या पृथक्त्व-वितर्क-सविचार धर्मध्यान के लिङ्गः २ रा शुक्ल ध्यान २६६ (१) भागम-उपदेश-आज्ञा ४ शुक्ल ध्यान कब २ ? या निसर्ग से श्रद्धा शुक्ल ध्यानों में योग (२) जिन साधु-गुणगान मन बिना भी ध्यान २७५ विनय पूजा-दान-श्रुन-शील अयोगावस्था में ध्यान क्या? २७६ संपन्नता इसके ४ कारण २७७ ४ शुक्ल ध्यान २४० तत्त्वदृष्टि के २ कारण मालम्बनः क्षमादि आगम व तक क्रोध निग्रह की विचारणा शुक्ल० में अनुप्रेक्षा मान ,,, , २४४ माया-लोभ , , " । ., के लिङ्गः अवधशुक्ल ध्यान किस तरह असं मोह-विवेक-व्युत्सर्ग ध्यावे? मनःसंकोच के ३ दृष्टान्तः शुक्ल ० के फल २८८ विष-अग्नि-जल धर्म-शुक्ल० संसार विरोधी २६१ वचनयोग-काययोग का ध्यान से मोक्षः कारण ? २६२ निरोध ध्यान से कर्मनाश ३ दृष्टान्तः कायादियोग आत्मगुण है जल-अग्नि-सुये वाणी विचार के बारे में ध्यान का प्रभाव २६४ न्याय दर्शन ध्यान यह कर्मरोग की योगनिरोध की प्रक्रिया चिकित्सा २६५ केवलिस मुद्घातः 'सेलेसी' कर्मदाहक दावानल २६६ के ५ अर्थ ध्यान हवा से कर्मबाद नष्ट २६. शैलेशी में कर्मक्षय की ध्यान का प्रत्यक्ष फल प्रक्रिया मानस पीडा नाश २ (४) जीव पर चिंतनः लक्षण ध्यान से शारीरिक दुःख में... साकार-निराकार उपयोग १६६ पीडा नहीं ३०१ अस्पृशद्गति व साकारो ध्यान यह गुणों का स्थान,सुखों पयोग से सिद्धि २६६ | का साधन, सवेरा ध्यातव्य ३०२ २४७ २६३ २५७
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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