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________________ ( १७६ ) होता है। यहां संस्थान याने 'संस्थिति, अवस्थिति, स्वरूप, पदार्थो का स्वरूप' अर्थ होता है । विचय याने चिंतन अभ्यास करना । सर्वज्ञ कथित सिद्धान्त शास्त्र के पथार्थ ही यथार्थ होने से उनका ही चिंतन अभ्यास करना होता है । ये पदार्थ नाम से इस प्रकार है: संस्थान विचय में सोचने के पदार्थ निम्न पदार्थों के स्वरूप का एकाग्र चिंतन करना है। इसमें मुख्य पदार्थ हैं, ६ द्रव्य, पंचास्तिकाय मय अष्टविध लोक, क्षेत्रलोक, बीव, ससार, चारित्र और मोक्ष । १. ६ द्रव्यों के लक्षण ४. जीव नित्य उपयोग | तप आकृति, आधार देह, भिन्न, रूप, वैराग्य कर्मकर्ता भाग्य | प्रकार, प्रमाण, उत्पा दादि पर्याय । २. नाम - स्थापना- द्रव्य क्षेत्र - काल-भाव पर्याय-लोक-इन भेदों से पंचास्तिकाय लोक -- वह नित्य है | ३. ७ पातालभूमि-द्वीप समुद्र- नरक- विमान भवन- व्यंतर नगर १४ राजलौक संस् थान । ५. संसार सागर । जन्मादि कषाय व्यसन मोह अज्ञानप्रेरित संयोग वियोग सम्यक्तव निष्पाप ज्ञान संवर जल | शीलांगभृत पाताल मुनि श्वापद आवर्त पवन रित ६ चारित्र जहाज बंधन निर्दोष कप्तान छिद्र स्थगन दुर्ध्यान अस्पृष्ट तरंग पवन मार्ग तरंग से अक्षुब्ध रत्नभृत व्यापारी ६. मोक्षनगर ज्ञानादि विनियोग सुख एक न्तिक, निर्बाध (सहज अनुपम, (अक्षय । जीवादि तत्त्व विस्तार से युक्त सर्वनय समूहमय सिद्धांत पदार्थ |
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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