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________________ ( १२० ) काय-वाग मनोयोगमय ध्यान विवेचन : ऐसे परिणत अपरिणत योग वाले के स्थान का जो विचार किया, उसका सार यह है कि ध्यान करने वाला खास तौर से यह देखे कि 'कैसे गांव आदि स्थान में अपने मन वचन काया के योग स्वस्थ रहते हैं ?' बस वह स्थान उसके लिए ध्यान के योग्य देश (स्थान) बनता है। प्रश्न - ध्यान के लिए मनोयोग की स्वस्थता तो जरूरी है क्यों कि ध्यान मनोयोगमय है। परन्तु वचन व काययोग की स्वस्थता किस तरह जरूरी है ? __उत्तर- बात सच है, परन्तु मनोयोग को स्वस्थता पर वचनयोग व काययोग की स्वस्थता उपकारक है । यदि वचनयोग अस्वस्थ हो उदा० अगर चाहे जैसे पाप शब्द, विकथा के शब्द आदि बोले जाते हैं, तोस्वाभाविक तौर से उससे मनोयोग याने विचार व्यापार बिगड़ता जाता है। ऐसे ही काययोग में परस्त्री आदि की तरफ आंखें देखती रहे, तो भी मनोयोग बिगड़ता है। इसके उलटे वागा व्यापार धर्म का चलता हो, उदा० वैराग्य के काव्य बोले जाते हों, या काययोग परमात्मा की या किसी तपस्वी सयमी या सन्त को उपासना में हो तो उससे अच्छा मनोयोग चलता है। अत: चाहे ध्यान मनोयोगमय हो, तब भी इसके लिए प्रशस्य वाक काययोग जरूरी है । जैन शासन की दूसरी एक विशिष्ट बात यह है कि ध्यान स्थिर मनोयोगमय की तरह स्थिर स्वस्थ वचनयोगमय और काययोगमय भी होता है । कहा है: ‘एवं विहा गिरा मे वत्तव्या, एरीस न वत्तव्वा । इय वेयालियवस्कस्त भासो वाइगं झाणं ।।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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