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________________ ( १०८ ) के उसी जन्म तक सीमित रहने वाले पदार्थ पर संग, आसक्ति या ममत्व करने का क्या अर्थ है ? (२) 'चाहे एक जन्म के लिए, पर सुख तो देते हैं न ?' नहीं। चिंता, संताप, विह्वलता आदि दुःख और मद, माया, हिंसा आदि अनेकानेक दोष खडे करते हैं, वहां सूख क्या ? वहां आसक्ति क्यो करनी चाहिये ? (३) भविष्य का अनन्त काल उज्ज्वल कर सकने वाले परमात्मा, सद्गुरु सद्धर्म यावत् सर्वत्याग को कौन भुलाता है ? कहिये, ये प्रिय बनाए हुए जगत के पदार्थ । तो फिर उन पर आसक्ति क्या करना? (४) स्वात्मा के शुद्ध ज्ञान, क्षमादि कषायोपशम, उदासीनता आदि गुणों की ओर दृष्टि नहीं जाती, वह इन बाह्य पदार्थों के ऊपरी दिखावटी गुणों को देखते रहने के कारण ही तो। इसी से आत्म समृद्धि प्रकट करने का इस उच्च जीवन का कर्तव्य भुलाया जाता है। तो उस पर संग क्या इस तरह सोच सोच कर संग या आसक्ति छोड़ कर निस्संगता का अभ्यास करना चाहिये। ३. निर्भयताः निस्संग बनने पर भी सम्भव है कि कभी स्वजाति, विजाति, द्रव्यहरण या मृत्यु आदि का भय खड़ा हो, तो वह मन को विचलित कर के, ध्यान नहीं करने दे या ध्यान-भंग करे। अत: भाग्य पर अटल विश्वास तथा सत्त्व को जागता हआ रख कर निर्भयता का अभ्यास करना चाहिये। अथवा अपनी आत्मा की उन्नति के बारे में यदि भय रहे कि (१) इस में विघ्न तो नहीं आयेगा ? (२) आयुष्य बीच में ही पूरा हो कर उन्नति का कार्य अधूख तो नहीं रहेगा ? (३) साधना में से पीछे हटना तो नहीं होगा ? यदि ऐसे ऐसे भय रहें तो इससे भी चिन्ता के परिणाम
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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